Janamashtami 2020 | shree krishna biography in hindi | Janmashtami 2020 subh muhurat | janmashtami celebration story in hindi
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shree krishna | Janamashtami 2020 |
Janamashtami 2020 in hindi दोस्तों आज में आपको बताऊंगा की (Janamashtami 2020 in hindi)मनाई जाती है और कब मनाई जाएगी और पूजा का सुभ मुहूर्त कब है और भगवान् श्री कृष्ण के बारे में भी बताऊंगा।
भगवान कृष्ण हिन्दू ही नही बल्कि पूरे मानव जाति के ईश्वर है।इसीलिए उन्हें परम भगवान माना जाता है।उनका जन्म भद्रपद के अष्टमी तिथि को रोहड़ी नक्षत्र में कंस के कारागार में हुआ था। भगवान श्री कृष्ण की १६१०८(16108)पत्निया थी जिनमे उनकी(८) 8 पद्रानी थी।८ पटरानियो में से रुक्मणी भगवान श्री कृष्ण की सबसे प्रिये पत्नी थी।हर पत्नी के १०(10) पुत्र थे।
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भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हर साल कृष्ण जन्माष्टमी (Janamashtami 2020)के रूप में मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार 11-12 अगस्त यानी दो दिनों तक मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना सबसे उत्तम माना गया है। कृष्ण जन्माष्टमी ये त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण की उपासना की जाती है।कब कहां और कैसे अवतार लेंगे कल्कि भगवान विश्व रहस्य
पूजा का समय-janmashtami pooja ka samaye
शुभ मुहूर्त- (Janmashtami 2020 subh muhurat)
12 अगस्त को पूजा का शुभ समय रात 12 बजकर 5 मिनट से लेकर 12 बजकर 47 मिनट तक है। पूजा की अवधि 43 मिनट तक रहेगी।
श्रीकृष्णभगवान विष्णु के 8वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर माने जाते हैं। कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं।
अर्जुन वध महाभारत |
भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन पालन हुआ था।
यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतित हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहां अपना राज्य बसाया।
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उन्होंने पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। 124 वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनके अवतार समाप्ति के तुरंत बाद परीक्षित के राज्य का कालखंड आता है। राजा परीक्षित, जो अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा अर्जुन के पौत्र थे, के समय से ही कलियुग का आरंभ माना जाता है।कर्ण विवाह: दो कन्याओं को बनाया था जीवन संगिनी
"कृष्ण" मूलतः एक संस्कृत शब्द है, जो "काला", "अंधेरा" या "गहरा नीला" का समानार्थी है। "अंधकार" शब्द से इसका सम्बन्ध ढलते चंद्रमा के समय को कृष्ण पक्ष कहे जाने में भी स्पष्ट झलकता है। इस नाम का अनुवाद कहीं-कहीं "अति-आकर्षक" के रूप में भी किया गया है।
श्रीमद भागवत पुराण के वर्णन अनुसार कृष्ण जब बाल्यावस्था में थे तब नन्दबाबा के घर आचार्य गर्गाचार्य द्वारा उनका नामकरण संस्कार हुआ था। नाम रखते समय गर्गाचार्यने बताया कि,यह पुत्र प्रत्येक युग में अवतार धारण करता है। कभी इसका वर्ण श्वेत, कभी लाल, कभी पीला होता है। पूर्व के प्रत्येक युगों में शरीर धारण करते हुए इसके तीन वर्ण हो चुके हैं।
इस बार कृष्णवर्ण का हुआ है, अतः इसका नाम कृष्ण होगा।चन्द्रवंशी क्षत्रिय यादव वसुदेव का पुत्र होने के कारण उसका अतिरतिक्त नाम वासुदेव भी रखा गया। "कृष्ण" नाम के अतिरिक्त भी कृष्ण भगवान को कई अन्य नामों से जाना जाता रहा है, जो उनकी कई विशेषताओं को दर्शाते हैं। सबसे व्यापक नामों में मोहन, गोविन्द, माधव, और गोपाल प्रमुख हैं।और १०८ नाम सबसे नीचे देख सकते है।
कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र के दिन रात्री के १२ बजे हुआ था। कृष्ण का जन्मदिन जन्माष्टमी के नाम से भारत, नेपाल, अमेरिका सहित विश्वभर में मनाया जाता है। कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था। वे माता देवकी और पिता वासुदेव की ८वीं संतान थे। श्रीमद भागवत के वर्णन अनुसार द्वापरयुग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज करते थे। उनका एक आततायी पुत्र कंस था और उनकी एक बहन देवकी थी। देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ था।
कंस ने अपने पिता को कारगर में डाल दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन गया। कंस की मृत्यु उनके भानजे, देवकी के ८वे संतान के हाथों होनी थी। कंस ने अपनी बहन और बहनोई को भी मथुरा के कारगर में कैद कर दिया और एक के बाद एक देवकी की सभी संतानों को मार दिया। कृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ तब कारागृह के द्वार स्वतः ही खुल गए और सभी सिपाही निंद्रा में थे। वासुदेव के हाथो में लगी बेड़िया भी खुल गई।गोकुल के निवासी नन्द की पत्नी यशोदा को भी संतान का जन्म होने वाला था। वासुदेव अपने पुत्र को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े ।
क्या है माता वैष्णो देवी और भगवान विष्णु के कल्कि अवतार का रहस्य
कई भारतीय ग्रंथों में कहा गया है कि पौराणिक कुरुक्षेत्र युद्ध (महाभारत के युद्ध ) में गांधारी के सभी सौ पुत्रों की मृत्यु हो जाती है। दुर्योधन की मृत्यु से पहले रात को, कृष्णा ने गांधारी को उनकी संवेदना प्रेषित की थी । गांधारी कृष्ण पर आरोप लगाती है की कृष्ण ने जानबूझ कर युद्ध को समाप्त नहीं किया, क्रोध और दुःख में उन्हें श्राप देती हैं कि उनके अपने "यदु राजवंश" में हर व्यक्ति उनके साथ ही नष्ट हो जाएगा।
महाभारत के अनुसार, यादव के बीच एक त्यौहार में एक लड़ाई की शुरुवात हो जाती है, जिसमे सब एक-दूसरे की हत्या करते हैं।कुछ दिनों बाद एक वृक्ष के नीचे नींद में सो रहे कृष्ण को एक हिरण समझ कर , जरा नामक शिकारी तीर मारता है जो उन्हें घातक रूप से घायल करता है कृष्णा जरा को क्षमा करते है और देह त्याग देते हैं । गुजरात में भालका की तीर्थयात्रा ( तीर्थ ) स्थल उस स्थान को दर्शाता है जहां कृष्ण ने अपना अवतार समाप्त किया तथा वापस वैकुण्ठ को गए । यह देहोतसर्ग के नाम से भी जाना जाता है। भागवत पुराण , अध्याय ३१ में कहा गया है कि उनकी मृत्यु के बाद, कृष्ण अपने योगिक एकाग्रता की वजह से सीधे वैकुण्ठ में लौटे। ब्रह्मा औरइंद्र जैसे प्रतीक्षारत देवताओं को भी कृष्ण को अपने मानव अवतार छोड़ने और वैकुण्ठ लौटने के लिए मार्ग का पता नहीं लगा।
हमारे ब्रहमांड में ब्रह्मा जी आदि जीव हैं जो (गर्भोदक्षायी ) विष्णु के नाभि कमल से उत्पन्न हुए। सैंकड़ो दिव्य वर्षों की तपस्या के बाद उनके हृदय में भगवान प्रकट हुए तथा वे शेष नाग की शैय्या पर लेटे हुए भगवान को देख पाये | भगवान ने सर्वप्रथम ब्रह्मा जी को श्रीमदभागवतम का सार ४ श्लोक में (चतु:श्लोकी) प्रदान किया ।
भगवान कहते है: हे ब्रह्मा, वह मैं ही हूँ जो सृष्टि के पूर्व विद्यमान था, जब मेरे अतिरिक्त कुछ भी नहीं था तब इस सृष्टि की कारण स्वरूपा भौतिक प्रकृति भी नहीं थी जिसे तुम अब देख रहे हो वह भी मैं ही हूँ और प्रलय के बाद भी जो शेष रहेगा वह भी मैं ही हूँ (श्रीमद भागवत २.९.३३)। हे ब्रह्मा ! जो भी सारयुक्त प्रतीत होता है, यदि वह मुझसे सम्बंधित नहीं है तो उसमें कोई वास्तविकता नहीं है। इसे मेरी माया जानो, इसे ऐसा प्रतिबिम्ब मानो जो अंधकार में प्रकट होता है (श्रीमद भागवत २.९.३४)। हे ब्रह्मा ! तुम यह जान लो की ब्रह्माण्ड के सारे तत्व विश्व में प्रवेश करते हुए भी प्रवेश नहीं करते है।
उसी प्रकार मैं उत्पन्न की गयी प्रत्येक वस्तु में स्थित रहते हुए भी साथ ही साथ प्रत्येक वस्तु से पृथक रहता हूँ (श्रीमद भागवत २.९.३५)। हे ब्रह्मा ! जो व्यक्ति परम सत्य रूप श्री भगवान की खोज में लगा हो उसे चाहिये की वह समस्त परिस्थतियों में सर्वत्र और सर्वदा प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों ही प्रकार से इसकी खोज करे (श्रीमद भागवत २.९.३६) ।
हृदय में ज्ञान उदय होने के बाद ब्रह्मा जी कहते है (ब्रह्म संहिता ५.१):
ईश्वर: परम: कृष्ण: सच्चिदानन्द: विग्रह:,
अनादिरादि गोविन्द: सर्व कारण कारणम:।।
भगवान तो कृष्ण है, जो सच्चिदानन्द (शास्वत,ज्ञान तथा आनन्द के) स्वरुप है। उनका कोई आदि नहीं है , क्योकि वे प्रत्येक वस्तु के आदि है। वे समस्त कारणों के कारण है।
"ईश्वर: परम: कृष्ण: सच्चिदानन्द: विग्रह:,
अनादिरादि गोविन्द: सर्व कारण कारणम:|"
(ब्रह्म संहिता ५.१) __भगवान तो कृष्ण है, जो सच्चिदानन्द (शास्वत,ज्ञान तथा आनन्द के) स्वरुप है | उनका कोई आदि नहीं है , क्योकि वे प्रत्येक वस्तु के आदि है | वे समस्त कारणों के कारण है | ब्रह्मा जी कहते है: जो वेणु बजाने में दक्ष है, खिले कमल की पंखुड़ियों जैसे जिनके नेत्र है, जिनका मस्तिक मोर पंख से आभूषित है, जिनके अंग नीले बादलों जैसे सुन्दर है, जिनकी विशेष शोभा करोड़ों काम देवों को भी लुभाती है, उन आदिपुरुष गोविन्द का मैं भजन करता हूँ । (ब्रह्म संहिता ५.३०)
ब्रह्मा जी आगे कहते है....
वे आगे कहते है: "मै उन आदि भगवान गोविंद की पूजा करता हूँ, जो अपने विविध पूर्ण अंशो से विविध रूपों तथा भगवान राम आदि अवतारों के रूप में प्रकट होते है किन्तु जो भगवान कृष्ण के अपने मूल रूप में स्वयं प्रकट होते है |" *(ब्रह्म संहिता ५.३९) ब्रह्मा जी ने ब्रह्म संहिता में प्रत्येक श्लोक के अंत में लिखा है : "आदिपुरुष गोविन्द का मैं भजन करता हूँ | ब्रह्माजी अपने लोक में भगवान गोविंद की पूजा अठारह अक्षरों वाले मन्त्र से करते हे जो इस प्रकार है: क्लिम कृष्णाय गोविन्दाय गोपिजन्वल्लाभय स्वाहा!"
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार---
परम भगवान् श्री कृष्ण सर्व आकर्षक तथा समस्त आनंद के श्रोत हैं, वे षड-एश्वेर्य पूर्ण अर्थात (असीमित) ज्ञान, धन, बल, यश, सोन्दर्य तथा त्याग से युक्त हैं । श्री कृष्ण परम ईश्वर, परम पुरुष, परम नियंता, समस्त कारणों के कारण है यही परम सत्य है | श्री कृष्ण समस्त यज्ञों तथा तपस्याओ के परम भोक्ता, समस्त लोको तथा देवताओ के परमेश्वर है। *(भगवद गीता ५.२९) "श्री कृष्ण की शक्ति से ही सारे लोक अपनी कक्षाओ में स्थित रहते है।" *(भगवद गीता १५.१३)
ब्रह्म संहिता कहती है--- ५.४६, ४८
"जिनके श्वास लेने से ही अनन्त ब्रह्मांड प्रवेश करते है तथा पुनः बाहर निकल आते है, वे महाविष्णु कृष्ण के अंशरूप है | अतः मै गोविंद या कृष्ण की पूजा करता हूँ जो समस्त कारणों के कारण है ।" *(ब्रह्म संहिता ५.४८) "श्री कृष्ण विष्णु के रूप में उसी प्रकार विस्तार करते है जिस प्रकार एक जलता दीपक दूसरे को जलाता है यधपि दोनों दीपक की शक्ति में कोई अंतर नहीं होता तथापि श्री कृष्ण आदि दीपक के समान है ।" *(ब्रह्म संहिता ५.४६)
संस्कृत में कृष्ण शब्द का अर्थ सर्व-आकर्षक है। वह पूर्ण ईश्वर है, जिन्हें देवताओं के देव भी कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, कृष्ण भगवान है क्योंकि वह सर्व आकर्षक है। व्यावहारिक अनुभव से हम देख सकते हैं कि कोई आकर्षक तब होता है जब उसके पास असीमित मात्रा में निम्नलिखित गुण हों..
(1) धन,
(2) शक्ति,
(3) प्रसिद्धि,
(4) सौंदर्य,
(5) बुद्धि, और
(6) त्याग।
एक जो एक ही समय में इन छहों समृद्धियों को असीमित मात्रा में प्रदर्शित करता है और उसे पारा शर मुनी के अनुसार भगवान माना जाता है।
मानवता के इतिहास में कोई और ऐसा व्यक्तित्व नहीं है, और इस तरह की गतिविधिया दुनिया के इतिहास में अद्वितीय है। सभी ऐतिहासिक खातों से, भगवान कृष्ण ने कंस के कारागृह में 5,000 वर्ष पहले अवतार लिया और चार भुजा वाले विष्णु-नारायण के रूप में अपनी मां के शरीर के बाहर दिखाई दिए। फिर उन्होंने खुद को एक साधारण शिशु में बदल दिया और अपने पिता से खुद को गोकुल में नंद महाराज और उनकी पत्नी यशोदा के घर ले जाने के लिए कहा। वैदिक साहित्य लाखों और अरबों वर्षों से उनकी उपस्थिति के इतिहास देता हैं। भगवत-गीता के चौथे अध्याय में कृष्ण का कहना है कि वह कुछ लाख साल पहले भगवद गीता के पाठों को सूर्य-देवता, विवासवन को निर्देश दे चुके हैं, क्योंकि उनके पास असीमित ज्ञान है क्यूंकि कृष्णा की याददाश्त असीमित है।
भगवान द्वारा बोले गए भगवद गीता को एक ग्रंथ के रूप में संसार द्वारा अपनी अतुलनीय गहराई के लिए स्वीकार किया गया है और व्यावहारिक निर्देशों से भरा हुआ है। दुनिया के सबसे प्रमुख पश्चिमी दार्शनिकों ने इसे उस अनमोल ज्ञान के लिए, जो यह मानव जाति को प्रदान करता है, सराहना की है । एक समझदार व्यक्ति ध्यान देगा कि भगवद गीता में निहित सभी निर्देश दुनिया के अन्य सभी धार्मिक ग्रंथों में भी निहित हैं, लेकिन यह एक उच्च ज्ञान है, जो ज्ञान की किसी अन्य पुस्तक में नहीं मिलता है।
एक व्यक्ति जो यह सब जानता है, के लिए क्या प्रासंगिकता है? आम तौर पर लोग सोचते हैं कि नैतिक सिद्धांतों और धार्मिक रीतियों को संपन्न करके वे खुश होंगे। अन्य लोग सोच सकते हैं कि आर्थिक विकास से खुशी प्राप्त की जा सकती है, और फिर भी दूसरों को लगता है कि केवल ज्ञान से खुश होंगे। पूरी दुनिया दूसरों के लिए प्रेम की प्रवृत्ति को पूरा करने के लिए बहुत उत्सुक है, हालांकि, यदि कोई इस प्रवृति को कृष्ण से प्रेम करने में लगा देता है, तो उसका जीवन सफल हो जाता है। यह एक कल्पना नहीं है अपितु एक तथ्य है जिसे व्यावहारिक अनुप्रयोग द्वारा महसूस किया जा सकता है। कोई भी सीधे उन प्रभावों को देख सकता है जो कृष्णा से प्रेम करने पर उत्पन्न होते हैं।
क्या कृष्ण भक्त थे यीशु : लुईस जेकोलियत (Louis Jacolliot) ने 1869 ई. में अपनी एक पुस्तक द बाइबिल इन इंडिया (The Bible in India, or the Life of Jezeus Christna) में लिखा है कि जीसस क्रिस्ट और भगवान श्रीकृष्ण एक थे। लुईस जेकोलियत फ्रांस के एक साहित्यकार और वकील थे। इन्होंने अपनी पुस्तक में कृष्ण और क्राइस्ट पर एक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। जीसस शब्द के विषय में लुईस ने कहा है कि क्राइस्ट को जीसस नाम भी उनके अनुयायियों ने दिया है। इसका संस्कृत में अर्थ होता है मूल तत्व।
इन्होंने अपनी पुस्तक में यह भी कहा है कि क्राइस्ट शब्द कृष्ण का ही रूपांतरण है, हालांकि उन्होंने कृष्ण की जगह क्रिसना शब्द का इस्तेमाल किया। भारत में गांवों में कृष्ण को क्रिसना ही कहा जाता है। यह क्रिसना ही योरप में क्राइस्ट और ख्रिस्तान हो गया। बाद में यही क्रिश्चियन हो गया। लुईस के अनुसार ईसा मसीह अपने भारत भ्रमण के दौरान जगन्नाथ के मंदिर में रुके थे।
क्या ईसा मसीह कृष्ण भक्त थे-
Carryminati biography in Hindi। carryminati का जीवन परिचय।
जी हां लुईस जेकोलियत (Louis Jacolliot) ने 1869 ई. में अपनी एक पुस्तक द बाइबिल इन इंडिया (The Bible in India, or the Life of Jezeus Christna) में लिखा है कि जीसस क्रिस्ट और भगवान श्रीकृष्ण एक थे। लुईस जेकोलियत फ्रांस के एक साहित्यकार और वकील थे। इन्होंने अपनी पुस्तक में कृष्ण और क्राइस्ट पर एक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। जीसस शब्द के विषय में लुईस ने कहा है कि क्राइस्ट को जीसस नाम भी उनके अनुयायियों ने दिया है. इसका संस्कृत में अर्थ होता है मूल तत्व।
इन्होंने अपनी पुस्तक में यह भी कहा है कि क्राइस्ट शब्द कृष्ण का ही रूपांतरण है, हालांकि उन्होंने कृष्ण की जगह क्रिसना शब्द का इस्तेमाल किया। भारत में गांवों में कृष्ण को क्रिसना ही कहा जाता है। यह क्रिसना ही योरप में क्राइस्ट और ख्रिस्तान हो गया. बाद में यही क्रिश्चियन हो गया।लुईस के अनुसार ईसा मसीह अपने भारत भ्रमण के दौरान भगवान जगन्नाथ के मंदिर में रुके थे। एक रूसी अन्वेषक निकोलस नोतोविच ने भारत में कुछ वर्ष रहकर प्राचीन हेमिस बौद्ध आश्रम में रखी पुस्तक द लाइफ ऑफ संत ईसा पर आधारित फ्रेंच भाषा में द अननोन लाइफ ऑफ जीजस क्राइस्ट नामक पुस्तक लिखी है। इसमें ईसा मसीह के भारत भ्रमण के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ है। हालांकि इन लेखकों के दावे कितने सच हैं यह तो हम नहीं जानते।
इन दावों में कितना सच है और कितनी कल्पना यह तो हमें नहीं पता मगर ये इतिहास की अभी तक एक न सुलझने वाली रोचक पहेली ज़रूर हैं।
shri krishna ki mrityu kaise hui in hindi
महाभारत युद्ध के बाद कौरवो का सम्पूर्ण नाश हो गया औरपांडवो के पक्ष में पांच पांडवो के सिवा कोई भी नही बचा। अपने पुत्र की मर्त्यु से गांधारी सोक में डूब गयी,उन्हें इस बात का बहुत दुःख हुआ की उनका कोई भी पुत्र जीवित नही बचा उन्हें इस बात का बहुत दुःख हुआ। पांडव जब हस्तिनापुर आये तो ध्रतराष्ट्र ने भीम को अपनी भुजाओ में मारने की सोची पर भगवान कृष्ण ने भीम की जगह पुतला रख दिया और भीम के प्राण बच गये थे।तभी गांधारी ने भगवान श्री कृष्ण को श्राप दे दिया था।गांधारी ने कहा की तुम्हारी मर्त्यु का कारण एक शिकारी होगा और तुम्हारा वध उसी के हाथो होगा।भगवान श्री कृष्ण ने गांधारी के क्रोध में दिए गए श्राप को श्विकार कर लिया।
एक बार जब भगवान श्री कृष्ण वनो में ध्यान में लीं थे तभी एक भील जरा नमक शिकारी ने कृष्ण को हिरन समझकर उनपे तीर चला दिया और भगवान श्री कृष्ण घायल अवस्था में ही अपना शरीर त्याग दिया।जब पता भील जरा को यह ज्ञात हुआ की वो कोई हिरन नही बल्कि भगवान श्री कृष्ण है तब वह बहुत दुखी हुआ उसने समंदर में लीन होकर अपनी देह त्याग दी।कुछ मान्यताओं माने तो जब भगवान श्री कृष्ण पिछले जनम में राम के रूप में थे तब उन्होंने बाली को चुपकर तीर मारा था ठीक उसी प्रकार इस जनम में भगवान श्री कृष्ण की महाबली बाली हाथो हुई।कहा जाता है कि बाली का जन्म भील जरा के रूप में श्री कृष्ण की मृत्यु का कारण बनने के लिए हुआ था।
भगवान श्री कृष्ण को कई नामो से जाना जाता है।उनमे से कुछ नाम बहुत प्रशिद्द है जैसे मोहन, कन्हैया, श्याम, गोपाल, वासुदेव आदि।
भगवान श्री कृष्ण के 108 नाम (108 Names of Lord Krishna in Hindi)
1: अचला : भगवान।
2: अच्युत : अचूक प्रभु, या जिसने कभी भूल ना की हो।
3: अद्भुतह : अद्भुत प्रभु।
4: आदिदेव : देवताओं के स्वामी।
5: अदित्या : देवी अदिति के पुत्र।
6: अजंमा : जिनकी शक्ति असीम और अनंत हो।
7: अजया : जीवन और मृत्यु के विजेता।
8: अक्षरा : अविनाशी प्रभु।
9: अम्रुत : अमृत जैसा स्वरूप वाले।
10: अनादिह : सर्वप्रथम हैं जो।
11: आनंद सागर : कृपा करने वाले
12: अनंता : अंतहीन देव
13: अनंतजित : हमेशा विजयी होने वाले।
14: अनया : जिनका कोई स्वामी न हो।
15:अनिरुध्दा : जिनका अवरोध न किया जा सके।
16: अपराजीत : जिन्हें हराया न जा सके।
17: अव्युक्ता : माणभ की तरह स्पष्ट।
18: बालगोपाल : भगवान कृष्ण का बाल रूप।
19: बलि : सर्व शक्तिमान।
20: चतुर्भुज : चार भुजाओं वाले प्रभु।
21: दानवेंद्रो : वरदान देने वाले।
22: दयालु : करुणा के भंडार।
23: दयानिधि : सब पर दया करने वाले।
24: देवाधिदेव : देवों के देव
25: देवकीनंदन : देवकी के लाल (पुत्र)।
26: देवेश : ईश्वरों के भी ईश्वर
27: धर्माध्यक्ष : धर्म के स्वामी
28: द्वारकाधीश : द्वारका के अधिपति।
29: गोपाल : ग्वालों के साथ खेलने वाले।
30: गोपालप्रिया : ग्वालों के प्रिय
31: गोविंदा : गाय, प्रकृति, भूमि को चाहने वाले।
32: ज्ञानेश्वर : ज्ञान के भगवान
33: हरि : प्रकृति के देवता।
34: हिरंयगर्भा : सबसे शक्तिशाली प्रजापति।
35: ऋषिकेश : सभी इंद्रियों के दाता।
36: जगद्गुरु : ब्रह्मांड के गुरु
37: जगदिशा : सभी के रक्षक
38: जगन्नाथ : ब्रह्मांड के ईश्वर।
39: जनार्धना : सभी को वरदान देने वाले।
40: जयंतह : सभी दुश्मनों को पराजित करने वाले।
41: ज्योतिरादित्या : जिनमें सूर्य की चमक है।
42: कमलनाथ : देवी लक्ष्मी की प्रभु
43: कमलनयन : जिनके कमल के समान नेत्र हैं।
44: कामसांतक : कंस का वध करने वाले।
45: कंजलोचन : जिनके कमल के समान नेत्र हैं।
46: केशव :
47: कृष्ण : सांवले रंग वाले।
48: लक्ष्मीकांत : देवी लक्ष्मी की प्रभु।
49: लोकाध्यक्ष : तीनों लोक के स्वामी।
50: मदन : प्रेम के प्रतीक।
51: माधव : ज्ञान के भंडार।
52: मधुसूदन : मधु- दानवों का वध करने वाले।
53: महेंद्र : इन्द्र के स्वामी।
54: मनमोहन : सबका मन मोह लेने वाले।
55: मनोहर : बहुत ही सुंदर रूप रंग वाले प्रभु।
56: मयूर : मुकुट पर मोर- पंख धारण करने वाले भगवान।
57: मोहन : सभी को आकर्षित करने वाले।
58: मुरली : बांसुरी बजाने वाले प्रभु।
59: मुरलीधर : मुरली धारण करने वाले।
60: मुरलीमनोहर : मुरली बजाकर मोहने वाले।
61: नंद्गोपाल : नंद बाबा के पुत्र।
62: नारायन : सबको शरण में लेने वाले।
63: निरंजन : सर्वोत्तम।
64: निर्गुण : जिनमें कोई अवगुण नहीं।
65: पद्महस्ता : जिनके कमल की तरह हाथ हैं।
66: पद्मनाभ : जिनकी कमल के आकार की नाभि हो।
67: परब्रह्मन : परम सत्य।
68 परमात्मा : सभी प्राणियों के प्रभु।
69: परमपुरुष : श्रेष्ठ व्यक्तित्व वाले।
70: पार्थसार्थी : अर्जुन के सारथी।
71: प्रजापती : सभी प्राणियों के नाथ।
72: पुंण्य : निर्मल व्यक्तित्व।
73: पुर्शोत्तम : उत्तम पुरुष।
74: रविलोचन : सूर्य जिनका नेत्र है।
75: सहस्राकाश : हजार आंख वाले प्रभु।
76: सहस्रजित : हजारों को जीतने वाले।
77: सहस्रपात : जिनके हजारों पैर हों।
78: साक्षी : समस्त देवों के गवाह।
79: सनातन : जिनका कभी अंत न हो।
80: सर्वजन : सब- कुछ जानने वाले।
81: सर्वपालक : सभी का पालन करने वाले।
82: सर्वेश्वर : समस्त देवों से ऊंचे।
83: सत्यवचन : सत्य कहने वाले।
84: सत्यव्त : श्रेष्ठ व्यक्तित्व वाले देव।
85: शंतह : शांत भाव वाले।
86: श्रेष्ट : महान।
87: श्रीकांत : अद्भुत सौंदर्य के स्वामी।
88: श्याम : जिनका रंग सांवला हो।
89: श्यामसुंदर : सांवले रंग में भी सुंदर दिखने वाले।
90: सुदर्शन : रूपवान।
91: सुमेध : सर्वज्ञानी।
92: सुरेशम : सभी जीव- जंतुओं के देव।
93: स्वर्गपति : स्वर्ग के राजा।
94: त्रिविक्रमा : तीनों लोकों के विजेता
95: उपेंद्र : इन्द्र के भाई।
96 वैकुंठनाथ : स्वर्ग के रहने वाले।
97: वर्धमानह : जिनका कोई आकार न हो।
98: वासुदेव : सभी जगह विद्यमान रहने वाले।
99: विष्णु : भगवान विष्णु के स्वरूप।
100: विश्वदक्शिनह : निपुण और कुशल।
101: विश्वकर्मा : ब्रह्मांड के निर्माता
102: विश्वमूर्ति : पूरे ब्रह्मांड का रूप।
103: विश्वरुपा : ब्रह्मांड- हित के लिए रूप धारण करने वाले।
104: विश्वात्मा : ब्रह्मांड की आत्मा।
105: वृषपर्व : धर्म के भगवान।
106: यदवेंद्रा : यादव वंश के मुखिया।
107: योगि : प्रमुख गुरु।
108: योगिनाम्पति : योगियों के स्वामी।
2: अच्युत : अचूक प्रभु, या जिसने कभी भूल ना की हो।
3: अद्भुतह : अद्भुत प्रभु।
4: आदिदेव : देवताओं के स्वामी।
5: अदित्या : देवी अदिति के पुत्र।
6: अजंमा : जिनकी शक्ति असीम और अनंत हो।
7: अजया : जीवन और मृत्यु के विजेता।
8: अक्षरा : अविनाशी प्रभु।
9: अम्रुत : अमृत जैसा स्वरूप वाले।
10: अनादिह : सर्वप्रथम हैं जो।
11: आनंद सागर : कृपा करने वाले
12: अनंता : अंतहीन देव
13: अनंतजित : हमेशा विजयी होने वाले।
14: अनया : जिनका कोई स्वामी न हो।
15:अनिरुध्दा : जिनका अवरोध न किया जा सके।
16: अपराजीत : जिन्हें हराया न जा सके।
17: अव्युक्ता : माणभ की तरह स्पष्ट।
18: बालगोपाल : भगवान कृष्ण का बाल रूप।
19: बलि : सर्व शक्तिमान।
20: चतुर्भुज : चार भुजाओं वाले प्रभु।
21: दानवेंद्रो : वरदान देने वाले।
22: दयालु : करुणा के भंडार।
23: दयानिधि : सब पर दया करने वाले।
24: देवाधिदेव : देवों के देव
25: देवकीनंदन : देवकी के लाल (पुत्र)।
26: देवेश : ईश्वरों के भी ईश्वर
27: धर्माध्यक्ष : धर्म के स्वामी
28: द्वारकाधीश : द्वारका के अधिपति।
29: गोपाल : ग्वालों के साथ खेलने वाले।
30: गोपालप्रिया : ग्वालों के प्रिय
31: गोविंदा : गाय, प्रकृति, भूमि को चाहने वाले।
32: ज्ञानेश्वर : ज्ञान के भगवान
33: हरि : प्रकृति के देवता।
34: हिरंयगर्भा : सबसे शक्तिशाली प्रजापति।
35: ऋषिकेश : सभी इंद्रियों के दाता।
36: जगद्गुरु : ब्रह्मांड के गुरु
37: जगदिशा : सभी के रक्षक
38: जगन्नाथ : ब्रह्मांड के ईश्वर।
39: जनार्धना : सभी को वरदान देने वाले।
40: जयंतह : सभी दुश्मनों को पराजित करने वाले।
41: ज्योतिरादित्या : जिनमें सूर्य की चमक है।
42: कमलनाथ : देवी लक्ष्मी की प्रभु
43: कमलनयन : जिनके कमल के समान नेत्र हैं।
44: कामसांतक : कंस का वध करने वाले।
45: कंजलोचन : जिनके कमल के समान नेत्र हैं।
46: केशव :
47: कृष्ण : सांवले रंग वाले।
48: लक्ष्मीकांत : देवी लक्ष्मी की प्रभु।
49: लोकाध्यक्ष : तीनों लोक के स्वामी।
50: मदन : प्रेम के प्रतीक।
51: माधव : ज्ञान के भंडार।
52: मधुसूदन : मधु- दानवों का वध करने वाले।
53: महेंद्र : इन्द्र के स्वामी।
54: मनमोहन : सबका मन मोह लेने वाले।
55: मनोहर : बहुत ही सुंदर रूप रंग वाले प्रभु।
56: मयूर : मुकुट पर मोर- पंख धारण करने वाले भगवान।
57: मोहन : सभी को आकर्षित करने वाले।
58: मुरली : बांसुरी बजाने वाले प्रभु।
59: मुरलीधर : मुरली धारण करने वाले।
60: मुरलीमनोहर : मुरली बजाकर मोहने वाले।
61: नंद्गोपाल : नंद बाबा के पुत्र।
62: नारायन : सबको शरण में लेने वाले।
63: निरंजन : सर्वोत्तम।
64: निर्गुण : जिनमें कोई अवगुण नहीं।
65: पद्महस्ता : जिनके कमल की तरह हाथ हैं।
66: पद्मनाभ : जिनकी कमल के आकार की नाभि हो।
67: परब्रह्मन : परम सत्य।
68 परमात्मा : सभी प्राणियों के प्रभु।
69: परमपुरुष : श्रेष्ठ व्यक्तित्व वाले।
70: पार्थसार्थी : अर्जुन के सारथी।
71: प्रजापती : सभी प्राणियों के नाथ।
72: पुंण्य : निर्मल व्यक्तित्व।
73: पुर्शोत्तम : उत्तम पुरुष।
74: रविलोचन : सूर्य जिनका नेत्र है।
75: सहस्राकाश : हजार आंख वाले प्रभु।
76: सहस्रजित : हजारों को जीतने वाले।
77: सहस्रपात : जिनके हजारों पैर हों।
78: साक्षी : समस्त देवों के गवाह।
79: सनातन : जिनका कभी अंत न हो।
80: सर्वजन : सब- कुछ जानने वाले।
81: सर्वपालक : सभी का पालन करने वाले।
82: सर्वेश्वर : समस्त देवों से ऊंचे।
83: सत्यवचन : सत्य कहने वाले।
84: सत्यव्त : श्रेष्ठ व्यक्तित्व वाले देव।
85: शंतह : शांत भाव वाले।
86: श्रेष्ट : महान।
87: श्रीकांत : अद्भुत सौंदर्य के स्वामी।
88: श्याम : जिनका रंग सांवला हो।
89: श्यामसुंदर : सांवले रंग में भी सुंदर दिखने वाले।
90: सुदर्शन : रूपवान।
91: सुमेध : सर्वज्ञानी।
92: सुरेशम : सभी जीव- जंतुओं के देव।
93: स्वर्गपति : स्वर्ग के राजा।
94: त्रिविक्रमा : तीनों लोकों के विजेता
95: उपेंद्र : इन्द्र के भाई।
96 वैकुंठनाथ : स्वर्ग के रहने वाले।
97: वर्धमानह : जिनका कोई आकार न हो।
98: वासुदेव : सभी जगह विद्यमान रहने वाले।
99: विष्णु : भगवान विष्णु के स्वरूप।
100: विश्वदक्शिनह : निपुण और कुशल।
101: विश्वकर्मा : ब्रह्मांड के निर्माता
102: विश्वमूर्ति : पूरे ब्रह्मांड का रूप।
103: विश्वरुपा : ब्रह्मांड- हित के लिए रूप धारण करने वाले।
104: विश्वात्मा : ब्रह्मांड की आत्मा।
105: वृषपर्व : धर्म के भगवान।
106: यदवेंद्रा : यादव वंश के मुखिया।
107: योगि : प्रमुख गुरु।
108: योगिनाम्पति : योगियों के स्वामी।
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